दारा सिंह: रिंग से लेकर 'हनुमान' तक, एक ऐसे नायक की कहानी जिसने हर भूमिका को अमर कर दिया

 Dara Singh: From the ring to 'Hanuman', the story of a hero who immortalised every role | दारा सिंह: रिंग से लेकर 'हनुमान' तक, एक ऐसे नायक की कहानी जिसने हर भूमिका को अमर कर दिया |




भारत के इतिहास में कुछ ही ऐसे नाम हैं जो बहुमुखी प्रतिभा और असाधारण व्यक्तित्व का प्रतीक बन गए हैं। इनमें से एक नाम है दारा सिंह रंधावा। एक ऐसा शख्स जिसने न सिर्फ कुश्ती के अखाड़े में दुनिया को अपनी ताकत का लोहा मनवाया, बल्कि फिल्मों की दुनिया में भी अपनी एक अलग पहचान बनाई। और फिर, एक ऐसा किरदार निभाया जिसने उन्हें करोड़ों लोगों के दिलों में भगवान का दर्जा दिला दिया - हनुमान जी का किरदार।

यह कहानी है एक साधारण इंसान की, जिसने असाधारण सपने देखे और उन्हें हकीकत में बदला। आइए, जानते हैं दारा सिंह की रिंग से लेकर 'हनुमान' तक की दिल छू लेने वाली यात्रा।

पंजाब के गाँव से 'रिंग का शेर' बनने तक

दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 को पंजाब के अमृतसर जिले के धरमूचक गाँव में हुआ था। बचपन से ही उनमें असाधारण शारीरिक ताकत थी। जब वे 17 साल के थे, तब उन्होंने कुश्ती की ट्रेनिंग शुरू की। उनकी कद-काठी और ताकत देखकर हर कोई हैरान था।

जल्द ही उन्होंने भारत के अखाड़ों में अपना नाम बनाना शुरू कर दिया। उनकी कुश्ती का अंदाज़ इतना आक्रामक और प्रभावी था कि उन्हें 'रिंग का शेर' कहा जाने लगा। उन्होंने दुनिया भर के बड़े-बड़े पहलवानों जैसे किंग काँग, जॉर्ज गार्डेन्को और लु ज्हेंग ली को धूल चटाई। 1954 में, उन्होंने 'रुस्तम-ए-हिंद' (Rustam-e-Hind) का खिताब जीता और 1968 में, उन्हें 'रुस्तम-ए-पंजाब' (Rustam-e-Punjab) का सम्मान भी मिला। उनकी कुश्ती की दुनिया में कोई बराबरी नहीं कर सकता था। वे 1983 में अपनी रिटायरमेंट तक कभी कोई मैच नहीं हारे। यह अपने आप में एक विश्व रिकॉर्ड है।

  दारा सिंह ने छोटी उम्र में ही अखाड़े में नाम कमाना शुरू कर दिया था।

  1947 के बाद उन्होंने भारत और विदेशों में कुश्ती लड़ना शुरू किया।

  1959 में वे कॉमनवेल्थ रेसलिंग चैंपियन बने।

  1968 में उन्हें वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियन का खिताब मिला।

  उस दौर में दारा सिंह का नाम सुनकर ही पहलवान कांप जाते थे।

  उन्होंने 500 से भी ज्यादा मुकाबले खेले और लगभग सभी जीते।

भारत में दारा सिंह का बड़ा नाम क्यों हुआ

  1. उनकी ताक़त और ईमानदारी ने उन्हें जनता का चहेता बनाया।

  2. वे कुश्ती को “इज़्ज़त” मानते थे, पैसों के लिए कभी खेल को नहीं बेचा।

  3. भारत के पहले पहलवान थे जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर “भारत” का झंडा ऊँचा किया।

  4. लोगों ने उन्हें “रिंग का शेर” और “भारत का मसीहा पहलवान” कहना शुरू कर दिया।

फिल्मी दुनिया की ओर कदम

जब दारा सिंह अपने करियर के चरम पर थे, तब उन्हें फिल्मों से ऑफर आने लगे। उनकी शारीरिक बनावट और जबरदस्त पर्सनालिटी ने फिल्म निर्माताओं को आकर्षित किया। 1952 में, उन्होंने एक फिल्म में छोटा सा रोल किया, लेकिन 1962 में फिल्म 'किंग कोंग' से उन्हें असली पहचान मिली।

इस फिल्म ने दारा सिंह को एक एक्शन हीरो के रूप में स्थापित कर दिया। इसके बाद, उन्होंने 'फौलाद', 'डाकू मंगल सिंह' और 'हीर-रांझा' जैसी कई फिल्मों में काम किया। उनकी जोड़ी मुमताज के साथ काफी लोकप्रिय हुई। दारा सिंह ने लगभग 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया और वे हिंदी, पंजाबी और तमिल सिनेमा के एक लोकप्रिय चेहरा बन गए। लोग उन्हें उनकी कुश्ती की तरह ही उनके फिल्मी किरदारों में भी बहुत पसंद करते थे।

  1952 में फिल्म संगदिल से छोटे रोल से शुरुआत की।

  फिर 1960 के दशक में वे एक्शन हीरो के रूप में मशहूर हो गए।

  उनकी लोकप्रिय फिल्में – किंग काँग, सिकंदर-ए-आजम, दारा सिंह: रेसलर, फूल बने अंगारे, राजकुमार, नन्हा फरिश्ता  आदि।

  बॉलीवुड में वे पहले ऐसे पहलवान बने जिनका नाम ही फिल्म हिट कराने के लिए काफी था।

हीरो से लेकर अमर हनुमान का रोल

दारा सिंह के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ 1987 में आया, जब रामानंद सागर ने उन्हें अपने धारावाहिक 'रामायण' में हनुमान जी का किरदार निभाने का ऑफर दिया। उस समय दारा सिंह 60 साल के करीब थे, लेकिन उनकी शारीरिक बनावट और आवाज़ इस किरदार के लिए एकदम सही थी।

दारा सिंह ने इस रोल को सिर्फ निभाया नहीं, बल्कि जिया। जब वे हनुमान जी के रूप में पर्दे पर आते थे, तो ऐसा लगता था मानो साक्षात भगवान ही प्रकट हो गए हों। उनकी शक्तिशाली गर्जना, उनकी भाव-भंगिमाएं और उनका निस्वार्थ समर्पण - हर एक चीज़ ने दर्शकों के मन में गहरी छाप छोड़ी।

यह किरदार दारा सिंह के लिए सिर्फ एक रोल नहीं था, बल्कि एक साधना थी। वे घंटों तक हनुमान जी के रूप में मेकअप में रहते थे। इस रोल ने उन्हें सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में एक सांस्कृतिक प्रतीक बना दिया। लोग उन्हें उनके असल नाम से कम और 'हनुमान जी' के नाम से ज्यादा जानने लगे। आज भी जब कोई हनुमान जी के बारे में सोचता है, तो दारा सिंह का चेहरा ही दिमाग में आता है।

  1980 के दशक में जब रामानंद सागर ने टीवी पर रामायण बनाई, तो हनुमान के किरदार के लिए सिर्फ एक ही नाम सबके ज़हन में आया – दारा सिंह

  उनकी कद-काठी, ताक़त और चेहरे की सादगी ने उन्हें हनुमान जी का जीवंत रूप बना दिया।

  जब टीवी पर रामायण आता था, तो लोग पूजा करके टीवी देखते थे। दारा सिंह का चेहरा लोगों की आस्था का प्रतीक बन गया।

  उनकी आवाज़, भाव-भंगिमा और शक्तिशाली शरीर ने हनुमान जी के रोल को इतना सजीव बना दिया कि आज भी जब लोग हनुमान जी की कल्पना करते हैं, तो दारा सिंह का चेहरा सामने आ जाता है।

राजनीति और समाज सेवा

  1. दारा सिंह सिर्फ खिलाड़ी और अभिनेता ही नहीं, बल्कि एक नेता भी रहे।

  2. 2003 में वे राज्यसभा के सदस्य बने।

  3. उन्होंने शिक्षा और खेल के लिए कई पहल की।

सम्मान और उपलब्धियाँ

  1. 1996 में उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया गया।

  2. 1998 में उन्हें राष्ट्रमंडल कुश्ती हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया।

  3. 2018 में भारत सरकार ने उन्हें भारत का सर्वोच्च खेल सम्मान – भारत केसरी से नवाज़ा।

  4. उन्हें लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी मिला।


दारा सिंह: एक विरासत

दारा सिंह का 12 जुलाई 2012 को निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। वे एक ऐसे शख्स थे जिन्होंने साबित कर दिया कि अगर सच्ची लगन और कड़ी मेहनत हो, तो कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकता है।

वे न सिर्फ एक महान पहलवान थे, न सिर्फ एक सफल अभिनेता, बल्कि वे करोड़ों लोगों के दिलों में बसने वाले 'हनुमान जी' थे। दारा सिंह ने अपने जीवन की हर भूमिका को इतनी ईमानदारी और समर्पण से निभाया कि वे हमेशा के लिए अमर हो गए।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने